अपराधी का कोई धर्म, जाति नही होती
मोहन चौहान की रिपोर्ट ✍🏻
50 हजार के इनामी बदमाश मुकेश की मौत से आमजन मे राहत
झाबुआ जिले के बोरी के तालाब मे ढुबने से मुकेष नाम के अपराधी की मौत हो गई। इस मौत से जहां आम जन मे सुकुन है वही लुटेरो एवं बदमाशों मे भय का वातावरण भी बना है क्योकि मुकेश पर दस मामले लुट ढकैती एवं कई अन्य मामले दर्ज थे पुलिस एवं आम जनता के लिए इस अपराधी की करतूत परेशान करने वाली थी। मुकेश के खिलाफ धार, बड़वानी, देवास, इंदौर जिलो के थानो मे विभिन्न मामले दर्ज थे मुकेश सामान्य अपराधी नहीं था बल्कि उसके आपराधिक गतिविधियों से पश्चिम मध्यप्रदेश मे हाहाकार मचा हुआ था। आठ मामलों मे वह न सिर्फ फरार था बल्कि पुलिस के लिए सिर दर्द बना हुआ था उस पर विभिन्न थानों मे इनाम भी घोषित किए गए थे मुकेश 50 हजार का इनामी बदमाश था लेकिन इसकी मौत पर कुछ लोग राजनीति और मातम बना रहे है क्या ऐसे अपराधी जो आमजन के सुख चैन के साथ खिलवाड़ करता हो जो पुलिस के लिए और समाज के लिए चुनौती बन गया हो उसके लिए की जा रही राजनीति क्या संदेश देना चाहती है। मुकेश के आपराधिक अंत से पश्चिम मध्यप्रदेश के निवासियों मे हर्ष है। इन प्रष्नो के उत्तर मुकेष की मौत पर चर्चा मे है क्या अपराधियों का खात्मा उचित नही है? क्या अपराध मुक्त समाज की कल्पना करना बेमानी है? क्या अपराधी की मौत पर कुछ समूहों द्वारा प्रोत्साहन की भूमिका शांतिपूर्ण समाज के लिए उचित है? अगर नही तो फिर मुकेश जैसे खूंखार अपराधी की मौत पर ऐसा राजनीतिक विधवा विलाप क्यों? आपराधिक रिकार्ड ही मुकेश की जीवन शैली को दर्शाता है।