माह-ए-रमजान, इस मासूम ने सिर्फ चार साल की उम्र में रखा रोजा…..अमन चैन की मांगी दुआएं
तेरी नस्लें पाक में हे बच्चा बच्चा नूर का
तु हे ऐ-ने नूर तेरा सब घराना नूर का
अलीराजपुर:- आसमान से बरसती आग और तन झुलसा देने वाली से गर्मी में जब बड़ों के लिए भी रोजा रखना किसी पहाड़ जैसी चुनौती से कम नहीं है, ऐसे में अलीराजपुर के सैय्यद परिवार में एक नन्हे रोजेदार सैय्यदा हसमीरा बनो सैयद मोहशीन ने महज 4 साल की उम्र में रोजा रखकर खुदा की बारगाह में इबादत का आगाज़ किया है। तपती धूप और गर्म हवाओं के बीच रमजान-उल-मुबारक में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखकर अल्लाह की इबादत में मशगूल है। रोजा, नमाज और तरावीह नमाज के साथ कुरआन की तिलावत कर रोजेदार अल्लाह को राजी करने में लगे है। इसी बीच कम उम्र के मासूम बच्चे भी रोजा रख अल्लाह की इबादत में मशगूल है। इसी कड़ी में अलीराजपुर के शहर काज़ी सैयद अफजल मिया साहब की पर पोती वो प्रभारी शहर काजी सैयद हनीफ कादरी चिश्ती की पोती सैयद मोहसिन मियां की बेटी ने 4 साल की उम्र में पहला रोजा रखकर हर किसी को चौंका दिया। सैय्यदा हसमीरा बनो ने पूरे परिवार के साथ पहले सहरी खाई, उसके बाद रोजे की नीयत कर रोजा रखा। पूरा दिन भूखा-प्यासा रहकर नमाज़ भी अदा की। शाम के समय पूरे परिवार के साथ रोजा इफ्तार किया। 4 वर्ष की उम्र में पहला रोजा रखकर सैय्यदा हसमीरा बेहद खुश है। परिवार ने बताया कि मासूम कई दिन से रोजा रखने की जिद कर रहीं थीं लेकिन परिवार ने उसे समझाया कि बच्चों के लिए रोजा रखना बहुत मुश्किल है इसके बावजूद जिद करते हुए सैय्यदा हसमीरा बनो ने सहरी खाकर रोजा रख लिया। शाम के वक्त हल्की प्यास का अहसास हुआ, लेकिन उस वक्त परिवार ने उसका हौसला बढ़ाया और आखिरकार 4 वर्षिय के सैय्यदा हसमीरा बनो ने पहला रोजा रख लिया। सभी ने सैय्यदा हसमीरा बनो को दुआएं देते हुए परिवार को मुबारकबाद पेश की है।
5 वर्षीय बुशरा ने पहला रोजा रखा
बागवान परिवार के शेहजाद सब्जी वाले कि 5 वर्षिय बुशरा ने पहला रोजा रखा। रमजान माह में छोटी उम्र के बच्चों में भी रोजे रखने का उत्साह देखा जा रहा है। चिलचिलाती धूप व तेज गर्मी के बाद भी बच्चे रोजे रखने में पीछे नहीं रह रहे हैं। 5 वर्षीय बुशरा ने शुक्रवार को पहला रोजा रखा। रोजा रखने के साथ ही उसने वालिदा के साथ इबादत भी की। दोपहर बाद कमजोरी आने के बाद भी वालिदा के साथ काम में हाथ बंटाया। शाम के समय जोर से प्यास व भूख की शिद्दत दिखी तो कमजोरी का अहसास भी किया, लेकिन असर की नमाज अदा करने के बाद उसने घर में इफ्तारी बनाने में हाथ बंटाया। पहला रोजा रखने से परिवार के लोगों में खुशी है।