अलीराजपुर जिले के गांवों में डोहा गीत व नृत्य की धूम – डोहो घड़े रै कुम्हार, डोहो हीरे भर्यो रमेसे
आदिवासी समुदाय दिवाली के त्योहार को बड़े धूमधाम और परंपरागत ढंग से मनाते हैं
बड़ी खट्टाली/अलीराजपुर । भारत में अनेक आदिवासी समुदाय रहते है। सबकी रीति-रिवाज, पहनावा अलग अलग है। यहाँ तक कि हर गौत्र की अपनी अपनी परंपरा, रीति-रिवाज होते हैं। फिर भी सर्व आदिवासी समाज को संगीत, नृत्य और प्रकृति आपस में जोड़ें हुए है। आदिवासी संस्कृति अपने आप मे अद्भुत हैं, यहाँ हर माह उत्सव चलते रहते हैं। नृत्य और संगीत तो जैसे आदिवासी समाज मे घुल मिल से गये है।
आदिवासी बाहुल्य अलीराजपुर जिले के गांवों में इस समय डोहा गीत व नृत्य की धूम है। दीपावली त्योहार के चलते रात्री में आदिवासी समुदाय के युवक-युवतियां सामुहिक रूप से गांवो में घर- घर डोहा गीत व नृत्य करने पहुंच रहे है। एक युवती बीच में सिर पर डोहा (मटकी में छोटे छोटे छेद कर देते हैं और उसमें पारम्परिक कलात्मक चित्रकारी कर बीच मे प्रज्वलित दीपक रखते हैं) रखकर नाचती हैं और उसके चारों और गोल घेरा बनाकर अन्य युवतियां डोहा गीत गाते हुए तालियों की थाप पर पैरो को मध्दिम- मद्धिम गति से ताल देते हुए गोल घेरे में नृत्य करती हैं। इसके फलस्वरूप गांवो में परिवार के प्रत्येक घर से उन्हें स्वागत कर सम्मान स्वरूप ग्रुप के युवकों को कोई कुछ पैसा देता है, कोई धान देता है, तो कोई चावल देता है। जिसके पास जो भी अन्न होता है वो भेंट करते देते है। छोटी दीवाली के दिन डोहा का विसर्जन डोहा बाबा पर होता हैं जहा डोहा देव की पारम्परिक पूजा अर्चना कर भोग लगाया जाता है।
हमारे साथी संदीप चौहान (डही) ने हमे क्षेत्रीय आदिवासी भिलाली भाषा मे प्रचलित डोहा गीत को हिंदी अनुवाद व व्याख्या सहित आप पाठको के लिए तैयार किया गया है।
डोहा गीत…..
चोमळ गूथ वो भुजाय -2
चोमळ हीरे रंगे भर्यो रमेसे
हिंदी अनुवाद – चोमळ बना दे वो भाभी चोमळ में हीर (उन) भी जड़ देना जिससे वो भी नाचेंगा।
व्याख्या – इस पंक्ति में ननद अपनी भाभी से कह रही हैं। हैं भोजाई मेरे लिए डोहा खेलने के लिए एक चोमळ (महिलाओं द्वारा सिर पर कोई वस्तु रखने के लिए उन, मोती और शंख से बनायी गयी कलात्मक वस्तु) बना दो और उसमें उन भी जड़ देना उन से जड़ा हुआ चोमळ भी मेरे साथ खूब नाचेंगा।
डोहो घड़े रै कुम्हार -2
डोहो हीरे भर्यो रमेसे
हिंदी अनुवाद – डोहो घड़ दे रे कुम्हार -2
डोहो हीर भरियो रमेसे (नाचेंगा)
व्याख्या – इस पँक्ति में लड़कियाँ कुम्हार से कह रही हैं- हैं कुम्हार डोहा (एक मटकी जिसमें छेद कर देते हैं और उसे रंग कर कलात्मक पारम्परिक चित्रकारी कर देते हैं और उसके अंदर दिप प्रज्वलित कर रख देते हैं गुजरात के गरबा मटकी की तरह) बना दे। उसमें उन भी जड़ देना, उन से जड़ा हुआ डोहा भी मेरे साथ खूब नाचेंगा।
वही आपको बतादे की आदिवासी बाहुल्य अलीराजपुर जिले में गाए जाने वाले गीतों में से डोहा गीत के साथ डोहा नृत्य भी प्रसिद्ध है। शुरुआत से ही इस अवसर पर डोहा गीत गाकर थिरकने की परंपरा रही है। हालांकि आदिवासी समाज में हर त्योहार मनाने का अंदाज अनोखा होता है।
फ़ोटो :
01) सन्दीप चौहान जिन्होंने डोहा गीत को हिंदी में अनुवाद कर व्याख्या सहित बताया।
02) मिट्टी से निर्मित डोहा जिसे युवती अपने सिर पर रख साथियो के साथ डोहा नृत्य करती है।
03) पारम्परिक डोहा गीत गाकर, डोहा नृत्य करती हुई युवतियां।