मदर्स डे पर युवाओं ने मां के प्रति व्यक्त की भावनाएं एवं हुआ काव्यपाठ कुछ न चाहे, सर्वस्व दे, वह होती है मां, बच्चों के पेट की खातिर भूखी सोती है मां
पिंकी गुप्ता/स्मिता अत्रे की रिपोर्ट ✍🏻
बड़वानी:- कुछ न चाहे, सर्वस्व दे, वह होती है मां, बच्चों के पेट की खातिर भूखी सोती है मां, अपने अरमान और खुषियां सब खोती है मां, तुलसी-पीपल की पूजा से संस्कार बोती है मां, अपने दुःख-दर्द में कब आंख भिगोती है मां, औलाद को चोट लगे तो खूब रोती है मां, इन काव्य पंक्तियों के साथ शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़वानी के स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्षन प्रकोष्ठ की कार्यकर्ता प्रीति गुलवानिया ने मदर्स डे के अवसर पर मां के प्रति भावनाएं व्यक्त कीं। यह आयोेजन प्राचार्य डाॅ. एनएल गुप्ता के मार्ग दर्शन में हुआ। सभी विद्यार्थियों ने हाथ जोड़कर मां के अपने जीवन में अब तक के योगदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। इन्होंने व्यक्त की भावनाएं रविवार अवकाश होने के बावजूद विद्यार्थी काॅलेज में उपस्थित हुए और उन्होंने अपनी मां के प्रति भावनाएं व्यक्त कीं। मां के बारे में बोलते हुए वर्षा मेहरा की आंखें भर आईं। उन्होंने रोते हुए कहा मां ने सदा हौसला दिया। सुभाष चौहान ने कहा मुझे मां ने जन्म दिया और मौसी मां ने पाला-पोषा तथा बड़ा किया। दुनिया में अगर कोई सबसे अधिक प्यारा है, तो वह मां है। राजेष निंगवाल ने कहा मेरे हंसने पर मां हंसती है और मेरे रोने पर मां रो पड़ती है। समर्पण सेन ने कहा मेरी मां मेरी सुपर हीरो है। रीना डावर ने कहा मां के रहते जीवन में कोई गम नहीं है। जानकी बर्मन ने कहा मेरी मां मुझे सदा सही रास्ता दिखाती है। रजनी सहिते ने कहा मां ने मुझे सिखाया है कि जीवन में कभी कमजोर मत पड़ना। प्रितेष बिल्लोरे ने कहा पापा की डांट और मार से बचाने के लिए मां मुझे अपने आंचल में छिपा लेती है, भियारी गुर्जर ने कहा मां ने मुझे उच्च लक्ष्य बनाना और उसे पाने के लिए मेहनत करना सिखाया है। पूनम भारत कुषवाह ने कहा मां ने मेरा सदा ही सपोर्ट किया है। तनिषा राठोड़ ने कहा मां मुझे जीवन के हर मोड़ पर कीमती सबक सिखाती है। संतोषी मोरे ने कहा मां के मिलने का मतलब है पूरे संसार का सुख मिलना। तुषार अरविंद गोले ने कहा मां ने परिवार को एकजुट करके रखा है। मां मेरी हर तकलीफ का सहारा है। मनीषा केवट ने कहा-मां ही मेरी दवा है और मां ही मेरी दुआ है। डाॅ. मधुसूदन चौबे ने स्वरचित कविता सुनाते हुए कहा कि- धरती सदा जन्नत लगी, मैं खुषनुमा बहार में हूं, जबसे आंखें खोली हैं, तबसे बस मां के प्यार में हूं। मां के पैरों में सिर झुकाया तो दीप जल उठे ‘मधु’, मुझे ऐसा लगा कि मैं वैष्णव देवी के दरबार में हूं। यह है मदर्स डे का इतिहास डाॅ. चौबे ने मदर्स डे का इतिहास बताते हुए कहा कि मदर्स डे से मिलते जुलते आयोजन प्राचीन ग्रीक-रोमन साम्राज्यों में प्रारंभ हुए। सत्रहवीं सदी में इंग्लैण्ड में मदरिंग संडे मनाया जाने लगा। ऽ आधुनिक तरह का मदर्स डे बीसवीं सदी के द्वितीय दषक में प्रारंभ हुआ। ऽ अमेरिका की कवयित्री जुलिया वार्ड होवे ने 1870 में सबसे पहले यह विचार दिया था कि आॅफिसियल तौर पर मदर्स डे मनाया जाना चाहिए। ऽ बहुत से लोग अमेरिका की एना जेरविस को मदर्स डे की मदर यानी प्रवर्तक मानते हैं। ऽ 8 मई 1914 को अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने संयुक्त प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, जिसके माध्यम से यह सुनिष्चित किया गया कि प्रतिवर्ष मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में मनाया जाएगा। ऽ धीरे-धीरे दुनिया के अन्य देशों में भी इसे मनाया जाना प्रारंभ हुआ। आयोजन में सहयोग वर्षा मुजाल्दे, सुभाष चौहान, सुरेश कनेश ने किया।